Pages

Friday 13 May 2011

जो तुम ऐसे होती




जो तुम ऐसे होतीं

जैसे सुबह के लिए सूरज.

गेहूँ की बालियों को पकाने के लिए
जैसे ठंड का होना.

एक मुकम्मल ग़ज़ल में आखीर तक
जैसे आते हैं काफिए.

जैसे पत्तियों में होता है क्लोरोफिल.

तुम्हारा होना
कच्चे घड़े के लिए
भट्ठी की आग की तरह होता.

कि तुम किताब में ज़िल्द की तरह होतीं
तो पन्ने पन्ने बिखर जाने का
डर न होता मुझे.

एक पुरी हरी पृथ्वी के लिए
उसकी कोख में तुम इकलौता बीज होतीं.
जो तुम ऐसे होतीं
जैसे हर खत्म हो जाने वाली बात के बाद
होती है एक शुरुआत

तुम्हें होना ही था
तो ऐसे होतीं
जैसे
दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर
चढ़ने वाले के साथ
होती है आखिरी उम्मीद.

No comments: